व्यवहार और एकांकी का संक्षिप्त सारांश
व्यवहार और एकांकी का संक्षिप्त सारांश
सेठ गोविंददास द्वारा रचित ‘व्यवहार’ एकांकी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है। इस एकांकी में सेठ गोविंददास ने जमींदार व किसानों के संघर्ष और उससे उपजे अंतर्द्वंद्व तथा जमींदार वर्ग की युवा पीढ़ी को गरीब किसान मजदूरों के हित का चिंतन करते हुए चित्रण किया है। एकांकी तीन दृश्यों में विभाजित है। एकांकी का सारांश निम्नवत है–
प्रथम दृश्य
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यह दृश्य रघुराजसिंह के महल की बालकनी से प्रारंभ होता है। रघुराजसिंह गाँव का जमींदार है तथा नर्मदाशंकर उसका मैनेजर है। रघुराजसिंह अपनी बहन के विवाह के उपलक्ष्य में आयोजित भोज में सभी ग्रामीण किसानों को परिवार सहित आमंत्रित करता है। रघुराजसिंह इसवे निर्णय को उसका मैनेजर गलत बताता है क्योंकि ऐसा करने से उसे पर्याप्त आर्थिक हानि होगी। रघुराजसिंह के पूर्वज ऐसे अवसरों पर चुने हुए घरों से केवल मर्दों को बुलाते थे। जिससे भोजन कराने में खर्च कम होता था और व्यवहार से (उपहार से) आमदमी अधिक होती थी। नर्मदाशंकर रघुराजसिंह के किसानों के हित में लिए गए कुछ अन्य फैसलों-लगान कम करना, कर्ज माफ करना तथा बिना नजराना लिए जमीन देने को भी गलत बताता है। रघुराजसिंह का मानना है कि किसानों का शोषण करना तथा उनसे व्यवहार लेना अनुचित है।
द्वितीय दृश्य
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यह दृश्य गाँव के एक मकान के कोठे से प्रारंभ होता है जहाँ बहुत से किसान बैठे हैं जो भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के हैं इन्हीं में । २२-२३ वर्ष का एक शिक्षित युवक है, जो देखने में किसान नहीं लगता। वह चूरामन नामक किसान का बेटा क्रांतिचंद्र है। उसने गाँव के एक घर में सभी किसान, गाँव के पंचों तथा अन्य ग्रामीणों की एक सभा का आयोजन किया है। जिसका उद्देश्य जमींदार द्वारा दिए गए भोज के आमंत्रण पर निर्णय लेना है कि किसान वहाँ जाएँ या नहीं। क्रांतिचंद्र इस बात से क्षुब्ध है कि निर्णय लेने में देरी क्यों की जा रही है, जबकि दावत का समय नजदीक आता जा रहा है। क्रांतिचंद्र निमंत्रण को अस्वीकार करना चाहता है, क्योंकि उसे स्वीकार करना किसान मजदूरों का अपमान है। क्योंकि वह एक बार अपने पिता के साथ जाकर उस अपमान का अनुभव कर चुका है। सभी किसान इस बात पर सहमत नहीं हो पाते। कुछ किसानों का मानना है कि नहीं जाना चाहिए तथा कुछ का मानना है कि जाना चाहिए। तब क्रांतिचंद्र किसानों को बताता है कि जमींदार किस प्रकार से उन्हें धोखा दे रहा है। जब किसान जमींदार द्वारा किए गए उपकारों की दुहाई देते हैं तो क्रांतिचंद्र अपने तर्कों के द्वारा यह सिद्ध कर देता है कि ये सब कार्य जमींदार ने केवल अपने लाभ के लिए किए हैं। यही बात सबको भोज के निमंत्रण पर भी है। इस प्रकार क्रांतिचंद्र भोज के निमंत्रण को स्वीकार करने को किसानों का अपमान सिद्ध करते हुए उसे अस्वीकार करने के लिए वहाँ से चला जाता है। सभी किसान स्तब्ध रह जाते हैं।
तृतीय दृश्य
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जमींदार रघुराजसिंह की बालकनी से प्रारंभ होता है जहाँ वह बैचेनी से टहल रहा होता है। तभी उसका मैनेजर बदहवास हालत में किसान प्रतिनिधि क्रांतिचंद्र की चिट्ठी लेकर आता है। पत्र को पढ़कर रघुराजसिंह का सिर शर्म से झुक जाता है क्योंकि यह पत्र किसानों द्वारा भोज निमंत्रण को अस्वीकार करने से संबंधित है। नर्मदाशंकर इसे किसानों की बदमाशी बताता है। यह किसानों द्वारा जमींदारों को बेइज्जत करने वाला कार्य है। रघुराजसिंह निश्चय करते हैं कि उन्हें अभी और बदलाव करने होंगे, जिससे वह किसानों का स्नेह व विश्वास प्राप्त कर सके। नर्मदाशंकर के समझाने पर भी वह जमींदारी की तौक गले से निकालकर किसानों के सच्चे हित में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय लेता है। यहीं पर एकांकी का समापन होता हैं।
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