अव्यय की परिभाषा, भेद और उदाहरणअव्यय क्या होता है :-अव्यय का शाब्दिक अर्थ होता है – जो व्यय न हो। जिनके रूप में लिंग , वचन , पुरुष , कारक , काल आदि की वजह से कोई परिवर्तन नहीं होता उसे अव्यय शब्द कहते हैं। अव्यय शब्द हर स्थिति में अपने मूल रूप में रहते हैं। इन शब्दों को अविकारी शब्द भी कहा जाता है। जैसे :- जब , तब , अभी ,अगर , वह, वहाँ , यहाँ , इधर , उधर , किन्तु , परन्तु , बल्कि , इसलिए , अतएव , अवश्य , तेज , कल , धीरे , लेकिन , चूँकि , क्योंकि आदि। अव्यय के भेद :-1. क्रिया-विशेषण अव्यय 1. क्रिया-विशेषण अव्यय :- जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का पता चलता है उसे क्रिया -विशेषण कहते हैं। जहाँ पर यहाँ , तेज , अब , रात , धीरे-धीरे , प्रतिदिन , सुंदर , वहाँ , तक , जल्दी , अभी , बहुत आते हैं वहाँ पर क्रियाविशेषण अव्यय होता है। जैसे :- (i) वह यहाँ से चला गया। प्रयोग के आधार पर क्रिया -विशेषण अव्यय के भेद :- 1. साधारण क्रियाविशेषण अव्यय 1. साधारण क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन शब्दों का प्रयोग वाक्यों में स्वतंत्र रूप से किया जाता है उन्हें साधारण क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) हाय! अब मैं क्या करूँ। 2. संयोजक क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन शब्दों का संबंध किसी उपवाक्य के साथ होता है उन्हें संयोजक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) जब अंकित ही नहीं तो मैं जी कर क्या करूंगी। 3. अनुबद्ध क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन शब्दों का प्रयोग निश्चय के लिए किसी भी शब्द भेद के साथ किया जाता है उन्हें अनुबद्ध क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) मैंने उसे देखा तक नहीं। रूप के आधार पर क्रियाविशेषण अव्यय के भेद :- 1. मूल 1. मूल :- जिन शब्दों में दूसरे शब्दों के मेल की जरूरत नहीं पडती उन्हें मूल क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) अचानक से सांप आ गया। 2. यौगिक :- जो शब्द दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने से बनते हैं उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) तुम रातभर में आ जाना। 3. स्थानीय :- वे अन्य शब्द भेद जो बिना किसी परिवर्तन के विशेष स्थान पर आते हैं उन्हें स्थानीय क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) वह अपना सिर पढ़ेगा। अर्थ क अनुसार क्रिया -विशेषण अव्यय के भेद :- 1. कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय 1. कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार के होने का पता चले उसे कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जहाँ पर आजकल , अभी , तुरंत , रातभर , दिन , भर , हर बार , कई बार , नित्य , कब , यदा , कदा , जब , तब , हमेशा , तभी , तत्काल , निरंतर , शीघ्र पूर्व , बाद , पीछे , घड़ी-घड़ी , अब , तत्पश्चात , तदनन्तर , कल , फिर , कभी , प्रतिदिन , दिनभर , आज , परसों , सायं , पहले , सदा , लगातार आदि आते है वहाँ पर कालवाचक क्रियाविशेषण अव्यय होता है। जैसे :- (i) वह नित्य टहलता है। 2. स्थान क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार के होने के स्थान का पता चले उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जहाँ पर यहाँ , वहाँ , भीतर , बाहर , इधर , उधर , दाएँ , बाएँ , कहाँ , किधर , जहाँ , पास , दूर , अन्यत्र , इस ओर , उस ओर , ऊपर , नीचे , सामने , आगे , पीछे , आमने आते है वहाँ पर स्थानवाचक क्रियाविशेषण अव्यय होता है। जैसे :- (i) मैं कहाँ जाऊं ? 3. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार के परिणाम का पता चलता है उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जिन अव्यय शब्दों से नाप-तोल का पता चलता है। जहाँ पर थोडा , काफी , ठीक , ठाक , बहुत , कम , अत्यंत , अतिशय , बहुधा , थोडा -थोडा , अधिक , अल्प , कुछ , पर्याप्त , प्रभूत , न्यून , बूंद-बूंद , स्वल्प , केवल , प्राय: , अनुमानत: , सर्वथा , उतना , जितना , खूब , तेज , अति , जरा , कितना , बड़ा , भारी , अत्यंत , लगभग , बस , इतना , क्रमश: आदि आते हैं वहाँ पर परिमाणवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) मैं बहुत घबरा रहा हूँ। 4. रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों से कार्य के व्यापार की रीति या विधि का पता चलता है उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जहाँ पर ऐसे , वैसे , अचानक , इसलिए , कदाचित , यथासंभव , सहज , धीरे , सहसा , एकाएक , झटपट , आप ही , ध्यानपूर्वक , धडाधड , यथा , ठीक , सचमुच , अवश्य , वास्तव में , निस्संदेह , बेशक , शायद , संभव है , हाँ , सच , जरुर , जी , अतएव , क्योंकि , नहीं , न , मत , कभी नहीं , कदापि नहीं , फटाफट , शीघ्रता , भली-भांति , ऐसे , तेज , कैसे , ज्यों , त्यों आदि आते हैं वहाँ पर रीतिवाचक क्रियाविशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे :- (i) जरा , सहज एवं धीरे चलिए। 2. संबंधबोधक अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों के कारण संज्ञा के बाद आने पर दूसरे शब्दों से उसका संबंध बताते हैं उन शब्दों को संबंधबोधक शब्द कहते हैं। ये शब्द संज्ञा से पहले भी आ जाते हैं। जहाँ पर बाद , भर , के ऊपर , की और , कारण , ऊपर , नीचे , बाहर , भीतर , बिना , सहित , पीछे , से पहले , से लेकर , तक , के अनुसार , की खातिर , के लिए आते हैं वहाँ पर संबंधबोधक अव्यय होता है। जैसे :- (i) मैं विद्यालय तक गया। प्रयोग की पुष्टि से संबंधबोधक अव्यय के भेद :- 1. सविभक्तिक :- जो अव्यय शब्द विभक्ति के साथ संज्ञा या सर्वनाम के बाद लगते हैं उन्हें सविभक्तिक कहते हैं। जहाँ पर आगे , पीछे , समीप , दूर , ओर , पहले आते हैं वहाँ पर सविभक्तिक होता है। जैसे :- (i) घर के आगे स्कूल है। 2. निर्विभक्तिक :- जो शब्द विभक्ति के बिना संज्ञा के बाद प्रयोग होते हैं उन्हें निर्विभक्तिक कहते हैं। जहाँ पर भर , तक , समेत , पर्यन्त आते हैं वहाँ पर निर्विभक्तिक होता है। जैसे :- (i) वह रात तक लौट आया। 3. उभय विभक्ति :- जो अव्यय शब्द विभक्ति रहित और विभक्ति सहित दोनों प्रकार से आते हैं उन्हें उभय विभक्ति कहते हैं। जहाँ पर द्वारा , रहित , बिना , अनुसार आते हैं वहाँ पर उभय विभक्ति होता है। जैसे :- (i) पत्रों के द्वारा संदेश भेजे जाते हैं। 3. समुच्चयबोधक अव्यय :- जो शब्द दो शब्दों , वाक्यों और वाक्यांशों को जोड़ते हैं उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। इन्हें योजक भी कहा जाता है। ये शब्द दो वाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं। जहाँ पर और , तथा , लेकिन , मगर , व , किन्तु , परन्तु , इसलिए , इस कारण , अत: , क्योंकि , ताकि , या , अथवा , चाहे , यदि , कि , मानो , आदि , यानि , तथापि आते हैं वहाँ पर समुच्चयबोधक अव्यय होता है। जैसे :- (i) सूरज निकला और पक्षी बोलने लगे। समुच्चयबोधक अव्यय के भेद :- 1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय 1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय :- जिन शब्दों से समान अधिकार के अंशों के जुड़ने का पता चलता है उन्हें समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। जहाँ पर किन्तु , और , या , अथवा , तथा , परन्तु , व , लेकिन , इसलिए , अत: , एवं आते है वहाँ पर समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होता है। जैसे :- (i) कविता और गीता एक कक्षा में पढ़ते हैं। 2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों में एक शब्द को मुख्य माना जाता है और एक को गौण। गौण वाक्य मुख्य वाक्य को एक या अधिक उपवाक्यों को जोड़ने का काम करता है। जहाँ पर चूँकि , इसलिए , यद्यपि , तथापि , कि , मानो , क्योंकि , यहाँ , तक कि , जिससे कि , ताकि , यदि , तो , यानि आते हैं वहाँ पर व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय होता है। जैसे :- (i) मोहन बीमार है इसलिए वह आज नहीं आएगा। 4. विस्मयादिबोधक अव्यय :- जिन अव्यय शब्दों से हर्ष , शोक , विस्मय , ग्लानी , लज्जा , घर्णा , दुःख , आश्चर्य आदि के भाव का पता चलता है उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। इनका संबंध किसी पद से नहीं होता है। इसे घोतक भी कहा जाता है। विस्मयादिबोधक अव्यय में (!) चिन्ह लगाया जाता है। जैसे :- (i) वाह! क्या बात है। भाव के आधार पर विस्मयादिबोधक अव्यय के भेद :- (1) हर्षबोधक :- जहाँ पर अहा! , धन्य! , वाह-वाह! , ओह! , वाह! , शाबाश! आते हैं वहाँ पर हर्षबोधक होता है। (2) शोकबोधक :- जहाँ पर आह! , हाय! , हाय-हाय! , हा, त्राहि-त्राहि! , बाप रे! आते हैं वहाँ पर शोकबोधक आता है। (3) विस्मयादिबोधक :- जहाँ पर हैं! , ऐं! , ओहो! , अरे वाह! आते हैं वहाँ पर विस्मयादिबोधक होता है। (4) तिरस्कारबोधक :- जहाँ पर छि:! , हट! , धिक्! , धत! , छि:छि:! , चुप! आते हैं वहाँ पर तिरस्कारबोधक होता है। (5) स्वीकृतिबोधक :- जहाँ पर हाँ-हाँ! , अच्छा! , ठीक! , जी हाँ! , बहुत अच्छा! आते हैं वहाँ पर स्वीकृतिबोधक होता है। (6) संबोधनबोधक :- जहाँ पर रे! , री! , अरे! , अरी! , ओ! , अजी! , हैलो! आते हैं वहाँ पर संबोधनबोधक होता है। (7) आशीर्वादबोधक :- जहाँ पर दीर्घायु हो! , जीते रहो! आते हैं वहाँ पर आशिर्वादबोधक होता है। 5. निपात अव्यय :- जो वाक्य में नवीनता या चमत्कार उत्पन्न करते हैं उन्हें निपात अव्यय कहते हैं। जो अव्यय शब्द किसी शब्द या पद के पीछे लगकर उसके अर्थ में विशेष बल लाते हैं उन्हें निपात अव्यय कहते हैं। इसे अवधारक शब्द भी कहते हैं। जहाँ पर ही , भी , तो , तक ,मात्र , भर , मत , सा , जी , केवल आते हैं वहाँ पर निपात अव्यय होता है। जैसे :- (i) प्रशांत को ही करना होगा यह काम। क्रिया -विशेषण और संबंधबोधक अव्यय में अंतर :-जब अव्यय शब्दों का प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के साथ किया जाता है तब ये संबंधबोधक होते हैं और जब अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं तब ये क्रिया -विशेषण होते हैं। जैसे :- (i) बाहर जाओ। |